हरियाणा में शिक्षा संस्थानों की गंभीर स्थिति: 90% स्कूलों में नहीं हैं प्रधानाध्यापक | India Zee News

India Zee News हरियाणा में शिक्षा संस्थानों की गंभीर स्थिति: 90% स्कूलों में नहीं हैं प्रधानाध्यापक | India Zee News

हरियाणा में शिक्षा संस्थानों की गंभीर स्थिति

राज्य के 90% सरकारी स्कूलों में प्रधानाध्यापक नहीं, 30 हजार शिक्षक पद खाली

By India Zee News Desk | प्रकाशित: 23 अक्टूबर 2025 | स्थान: चंडीगढ़, हरियाणा
हरियाणा के सरकारी विद्यालयों की स्थिति की तस्वीर

हरियाणा की शिक्षा व्यवस्था एक बार फिर चर्चा में है। एक हालिया सरकारी रिपोर्ट ने राज्य की शिक्षा व्यवस्था की खामियों को उजागर किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य के सरकारी विद्यालयों में लगभग 90 प्रतिशत स्कूलों में प्रधानाध्यापक का पद खाली है। कुल 916 स्वीकृत पदों में से केवल 93 पर ही नियमित नियुक्तियां हुई हैं। इसके अलावा, लगभग 30,000 शिक्षक पदों पर भर्ती प्रक्रिया लंबित है। यह स्थिति न केवल शिक्षकों पर अतिरिक्त बोझ डाल रही है बल्कि छात्रों की गुणवत्ता पर भी नकारात्मक प्रभाव छोड़ रही है।

नेतृत्व की कमी से स्कूलों में गिर रही अनुशासन और शिक्षा की गुणवत्ता

प्रधानाध्यापक की अनुपस्थिति का सीधा असर विद्यालयों के प्रशासन और अनुशासन पर पड़ रहा है। जिन स्कूलों में वरिष्ठ अध्यापक अस्थायी रूप से प्रभारी बनाए गए हैं, वे अक्सर अतिरिक्त कार्यभार के कारण शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दे पा रहे। कई शिक्षकों ने बताया कि बिना स्थायी नेतृत्व के विद्यालयों में निर्णय प्रक्रिया प्रभावित हो रही है।

हरियाणा शिक्षक संघ के प्रतिनिधियों का कहना है कि प्रधानाध्यापक का पद केवल प्रशासनिक नहीं बल्कि शैक्षणिक मार्गदर्शन से भी जुड़ा होता है। जब यह जिम्मेदारी खाली रहती है, तो शिक्षण गतिविधियों में निरंतरता और गुणवत्ता दोनों प्रभावित होती हैं।

सरकारी आंकड़े बताते हैं चिंताजनक स्थिति

शिक्षा विभाग द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, राज्य के प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों की भारी कमी है। वर्ष 2024-25 में विभाग ने 10,000 पदों के लिए विज्ञापन जारी किया था, परंतु प्रक्रिया अभी तक पूर्ण नहीं हुई। इससे पहले भी कई बार भर्ती प्रक्रिया कानूनी विवादों और नीति परिवर्तनों के कारण अटकी रही है।

एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि "अधिकांश स्कूलों में शिक्षक न केवल पढ़ाने का काम कर रहे हैं बल्कि प्रशासनिक कार्य, जनगणना और चुनावी ड्यूटी जैसे कार्यों में भी व्यस्त हैं। इस वजह से शिक्षण पर समय और ध्यान दोनों घट रहे हैं।"

ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति और भी गंभीर

हरियाणा के ग्रामीण इलाकों में यह संकट और गहरा है। कई गांवों में स्कूल तो हैं, पर वहां नियमित शिक्षक नहीं पहुंचते। प्रधानाध्यापक पद तो वर्षों से खाली पड़े हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के छात्र या तो निजी ट्यूशन का सहारा लेते हैं या फिर पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते हैं।

महिला शिक्षा की स्थिति भी चिंताजनक है। रिपोर्ट के अनुसार, 40% बालिकाएं आठवीं के बाद स्कूल छोड़ देती हैं क्योंकि उनके क्षेत्रों में शिक्षकों और संसाधनों की भारी कमी है।

सरकार की प्रतिक्रिया और योजनाएं

राज्य सरकार ने इन आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि भर्ती प्रक्रिया जल्द ही पूरी की जाएगी। शिक्षा मंत्री ने कहा, “हमने शिक्षकों की भर्ती के लिए पारदर्शी प्रणाली तैयार की है। हर जिले में शिक्षकों की तैनाती संतुलित ढंग से की जाएगी ताकि किसी भी क्षेत्र में कमी न रहे।”

सरकार ने यह भी घोषणा की है कि प्रधानाध्यापक और वरिष्ठ अध्यापकों के लिए अलग प्रशिक्षण कार्यक्रम तैयार किया जाएगा ताकि भविष्य में ऐसे प्रशासनिक संकटों से बचा जा सके।

विशेषज्ञों की राय: शिक्षा में निवेश और नीति सुधार की जरूरत

शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि हरियाणा जैसे औद्योगिक राज्य में शिक्षा की नींव कमजोर होना चिंताजनक संकेत है। शिक्षा में निवेश और नीतिगत सुधार दोनों की जरूरत है। विशेषज्ञों के अनुसार, शिक्षक भर्ती की गति बढ़ाने के साथ-साथ प्रशिक्षण और मूल्यांकन प्रणाली को भी मजबूत बनाना आवश्यक है।

चंडीगढ़ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. संजीव अग्रवाल कहते हैं, “शिक्षा की गुणवत्ता केवल इमारतों और सुविधाओं से नहीं आती, बल्कि योग्य शिक्षकों और सशक्त नेतृत्व से आती है। जब राज्य के इतने बड़े हिस्से में प्रधानाध्यापक ही नहीं हैं, तो यह गंभीर प्रशासनिक असफलता का संकेत है।”

आगे की राह

रिपोर्ट ने सरकार के सामने कई सवाल खड़े किए हैं — क्या नई भर्ती प्रक्रिया समय पर पूरी होगी? क्या शिक्षकों को ग्रामीण क्षेत्रों में भेजने के लिए पर्याप्त प्रोत्साहन मिलेगा? और क्या शिक्षा बजट में पर्याप्त बढ़ोतरी की जाएगी?

हरियाणा की शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए अब केवल नीतियां नहीं, बल्कि त्वरित और स्थायी कदम उठाने की आवश्यकता है। अन्यथा, यह संकट आने वाले वर्षों में राज्य के सामाजिक और आर्थिक विकास को प्रभावित कर सकता है।

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